29 फरवरी और धरा दिवस
मृगतृष्णा की दुनिया
देवनागरी में लिखें
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Saturday, 2 May 2020
Wednesday, 12 October 2016
अ ब स
देखते देखते ... पढ़ते लिखते ... पल पल गुजरते ... पाँच साल गुजर गये ... ब्लॉग जगत में आये ....
सीखने की उम्र तैय नहीं होती ... प्रमाणित करने में जुटी हूँ ....
बुढ़ापा ..... अकेलापन ... रो धो के काटने के लिए नहीं मिला होता है
रोज सीखती हूँ ... रोज नये दिन नई बातें ....
सुख "अ" सीखने की ... अ = हाइकु
नवजाताक्षि
खोलना व मूँदना
मेघ में तारे ।
दौड़ लगाता
धावक तन्हा क्षेत्र
रक्तिम लिली ।
सर्पीली राहें
रंग रोशन छटा
इन्द्रधनुषी ।
चनिया चोली
भू धारे सतरंगी
रचे रंगोली ।
खुशी "ब" लिखने की ... ब = वर्ण पिरामिड
स्व
रमे
शगुन
पौ फटते
अक्स पे जमे
कर हमदम
श्रीराम सरगम
|
सो
रोध
स्व क्रोध
मुक्ति बोध
हे राम शोध
सत्यार्थ प्रकाश
जगत हिताकाश
|
*ण
मति
ना प्रश्न
काल परे
उर्जा ढ़ालती
भू ,माँ ,अम्बे रत्न
वात्सल्य चिरंतन
*ण=निर्णय
|
ले
झट
माँ-अंक
फैला नभ
भर लो दंभ
सुन कराहट
भवानी आती खट
|
हर्ष "स" = लघु कथा
“फांस”
नवरात्र में सपरिवार सदस्याओं के लिए महिला क्लब में डांडिया आयोजन रखा गया था। अभी चंद महीने पहले ही क्लब की सदस्या बनी थी गंगा। पिछले कई वर्षों से ; मेला की भीड़ में अकेली जाने का साहस नहीं जुटा पाने के कारण , वो बाहर निकलती ही नहीं थी।
इस बार कई लोगों का साथ पाकर डांडिया आयोजन में गई। इस अंदाजा से कि रात्रि खाने तक लौट आयेगी क्यों कि बहुत बार कहने के बाद भी उसके पति उसके साथ जाने के लिए तैयार नहीं थे।
डांडिया आयोजन से लौटी भी हड़बड़ा कर जल्दी ही । लेकिन फ्लाई ओवर पर ढ़ाई घण्टे जाम में फँस कर घर लौटते लौटते बारह सवा बारह हो गए।
घर में ज्वालामुखी प्रतीक्षित था पति के रूप में । वो समझ नहीं पा रही थी कि जो आदमी 35 साल के शादी शुदा जिंदगी में 40 बार तो जरूर बिना कुछ बताये कि कहाँ जा रहे हैं ,किन लोगों के संग रहेंगे , कब लौटेंगे रात के ढ़ाई तीन बजे या कभी कभी सुबह तक गायब रहा । वो आदमी इतना फट कैसे सकता है कि "औरत मर्द की पटदारी कैसे कर सकती है ।"
अ ब स ......
Tuesday, 23 April 2013
कैसे .
ना बहन थी ….
ना बेटी हुई ….
बहुत नाज़ों से ,
पाल रही थी ,
एक पोती की
नाज़ुक तमन्ना ….
मर्यादित मिठास
जीवन में होता ....
अब मुश्किल में
जां आन पड़ी ….
कलेज़े में हुक बड़ी….
डर और आतंक के
स्याह समुंदर में
डूब उतरा रही हूँ ….
छ: महीने की पोती को
कैसे लाल-मिर्ची की
पुड़िया पकड़ाऊँगी ....
एक साल की बच्ची को
आखों में डालने वाला
स्प्रे पकड़ाऊँगी ....
डेढ़ साल की मुन्नी को स्पर्श ,
कैसा-कैसा (good-touch=bad-touch=secret-touch)
कैसे समझाऊँगी
दो साल की चुन्नी को
कटार कैसे थमाऊँगी
ढ़ाई साल की नन्ही को
तीन साल की
साढ़े तीन साल की
चार साल की
साढ़े चार साल की
माखौल तो ना उड़ाओ ....
बहुत शौक है सलाह देने का ....
सलाह कोई कारगर तो सुनाओ ….
समझु और समझाऊँ
शुक्रिया दूँ ...........
http://sarasach.com/poet-3/
http://www.nawya.in/hindi-sahitya/item/vibha 3.html
Friday, 19 April 2013
कब तक ?
कब तक ?
कब तक हम कागज़ काला करते रहेंगे ....
आखिर कब तक देश दहलता रहेगा ....
कब तक वे गाल बजाते रहेंगे .....
कौन जबाब देगा ....
कौन बताएगा ...
पाँच साल की बच्ची क्या पोशाक पहनी थी कि वो हवश की शिकार हुई
किस बॉय फ्रेंड के साथ देर रात को अय्यासी कर रही थी
कौन सा अंग आकर्षित किया कि उसके प्राइवेट पार्ट में 200ml का बोतल
और एक मोमबत्ती डालने की ललक पैदा हुई .....
???????????
बहुत मांग चुकी कड़ी-से कड़ी सज़ा
फांसी की सज़ा
अब तो एक ही मांग
बदला ऐसा जो रूह कापे
काट डालो प्राइवेट पार्ट क्यूँ कि उसने ऐसा ही कुकर्म किया
फोड़ डालो दोनों आँखें
आंखो की ही खता थी
काट डालो दोनों हांथ उसी से पकड़ा होगा
छोड़ दो ,छोड़ दो बिलबिलाने के लिए सड़कों पर
उसके शरीर में कीड़े पड़े .........
Wednesday, 17 April 2013
है कि नहीं ....
है कि नहीं ……
बहुत गुस्सा में हैं ……
है कि नहीं ……
प्रेमी या प्रेमिका बे-वफ़ा निकले ....
पत्नी या पति मगरूर -जल्लाद निकले ....
स्वाभाविक प्रतिक्रिया है ,मेरे दोस्त ,
है कि नहीं ….
कोसो ना ,
पानी पी-पी के कोसो ....
जितनी गालियाँ देनी है , दो
उनका नाम लेकर दो ना …
एक की गलती की सज़ा ,
सारे कौम को क्यूँ दे रहे …
ना-इंसाफ़ी है ….
है कि नहीं ….
औरत के नाम पे कलंक ,
या ...
सारे मर्द एक जैसे कहने से ….
हमारे और रिश्ते भी तो
उसी दायरे में आ जाते हैं .…
है कि नहीं ….
माँ -मौसी ,दीदी-बुआ ,भाभी-चाची ,ताई -मामी ….
ताऊ-फूफा ,मौसा-चाचा ,मामा-पापा ,भाई-भतीजा ....
सभी को भी एक साथ
कोसना-श्रापना चाहेंगे ,नहीं ना ,
है कि नहीं ….
माँ अच्छी या बुरी निकली तो
लो आप तो यशोदा-कैकई को ले कर बैठ गए ….
दोस्त मेरे
हमारे औलाद विष्णु अवतार नहीं हैं ,
है कि नहीं .…
बेटा लायक या ना-लायक निकला ,
तो आप श्रवण को याद करने लगे ….
जहां तक मेरी अल्प-बुद्धि कहती है ,
कि वो शादी-शुदा नहीं और अल्पायु थे ….
है कि नहीं .…
बहू तो सभी को तभी भाती
जब वो सास को चौके से छुटकारा दिला कर बिस्तर पर बैठा दे
डोली से उतरते ही ....
है कि नहीं ....
ननद के नखरे उठा उसे सजा-सवांर दे
डोली से उतरते ही ....
है कि नहीं
देवर के कपड़े धो सहेज दे
डोली से उतरते ही ....
है कि नहीं
ससुर को वैसे तो कोई प्रॉब्लेम नहीं होती लेकिन ध्यान तो देना ही चाहिए
डोली से उतरते ही ...।
है कि नहीं ....
छोटे से पौधे को आप गमले में लगाते हैं तो
पूरा ध्यान(care) देते हैं ....
है कि नहीं ....
कड़ी धूप में नहीं रखते
कहीं जल ना जाए ,
है कि नहीं ....
ज्यादा जल नहीं डालते
कहीं गल ना जाये ,
है कि नहीं ....
बहू तो विशाल वृक्ष के रूप में आई है....
अतिरिक्त (Extra) देखभाल(Care) की जरूरत होगी ना
पनपने फूलने के लिए
है कि नहीं ….
बोलो - बोलो है कि नहीं ....
http://sarasach.com/poet/
Monday, 15 April 2013
सार
Senior Deputy Collector jailed for raping his 15-years-old daughter on Saturday(13-04-2013) at Patna
कल काला दिन .....
बाप जन्म देता करता सार सार = पालन-पोषण
कैसे मर जाता उसके आंखो का सार सार = पानी
बन जाता सारमेय कर ना पता सार सारमेय=कुत्ता सार = रक्षा
कर देता अपने ही धी का दामन तार -तार
ऐसे में हो जाती मानवता की हार
सारा समाज हदप्रद हो जाता शर्मसार
क्यूँ नहीं कर पाता काम-इच्छा से रार
कामान्ध हो भूल जाता लोकाचार
इस गलती का एक ही दंड हो संगसार
हर गली हर पर नुक्कड़ पर छपवा दो इश्तेहार
सब संग जब मिल चिल्लायेगें तभी निकलेगा सार सार = परिणाम
तीनों का स्वभाव एक जैसे हैं ...
इसी दिन को
बहुत -बहुत -बहुत साल पहले मेरी सासु माँ
बहुत -बहुत साल पहले मेरे पति
और
बहुत साल पहले मेरे सुपुत्र का
जन्म हुआ था ....
आज हिन्दी तिथि के अनुसार उन तीनों का जन्मदिन है
और
English date के अनुसार मेरे पति का ....
समय बदलता है ...
पीढ़ी दर पीढ़ी बदल जाती है ....
लेकिन ....
सोच और स्वभाव ...
हर युग में ...
हर पीढ़ी में ...
एक ही सोच कायम रहती है ..
ये चरितार्थ करते हैं
इन तीनो का स्वभाव ...
क्यूँ कि एक जैसे हैं ........
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