“आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना स्त्रियों के लिए आवश्यक है…! आजकल के दौर में नौकरी करना प्रत्येक नारी की आवश्यकता है…! उच्च शिक्षा प्राप्त कर कोई स्त्री केवल घर-आँगन-चौके तक कैसे दफ़न होकर रह सकती है? यही न तुमने कहा था…!” बुआ सास ने कहा।
“और तब आपने कहा था, -एकल परिवार से दूर हुए एक दंपति के परिवार में, अगर आर्थिक सहायता करना अति आवश्यक नहीं हो तो पत्नी को केवल घर-आँगन-चौके सम्भालने के साथ बैंक-बिजली-गैस-बाजार-अस्पताल के संग बच्चों की शिक्षा-संस्कृति में सहायक होने जैसी बेहद महत्त्वपूर्ण दायित्व सम्भालना चाहिए…,” भतीजे की पत्नी की बात पूरी होने के पहले-
“एक ग़ैर-ज़रूरतमंद के नौकरी नहीं करने से एक ज़रूरतमंद के लिए स्थान रिक्त रह जाता है…!” बुआ सास ने कहा।
“जी! और लगभग दस-बारह साल लगे मेघ छँटने में। मुझे आपकी बात समझ में आयी, जब मेरी बिटिया सयानी होने लगी और तब मैंने त्यागपत्र दे दिया…!” भतीजे की पत्नी की आवाज सभी को लुभा रही थी।
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