देवनागरी में लिखें

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Saturday 25 February 2012

" हक़ है पगलाने का "

कुछ तो आप सोच रहे होंगे.... ? बेटा ने एक गाड़ी क्या ली , ये तो वावरी हुई जा रही है ,पागल है ,रोज ,हजारों लोग गाड़ी लेते हैं , इसमें इतना इतराने की क्या बात है.... ?
तो बताऊँ.... ?
मेरी ननद की शादी के दुसरे दिन पुरा बाराती "माड़ो"(मंडप,जिसके नीचे शादी की रस्मे होती है) में आये दोपहर का खाना खाने,तो मैं अगले रस्म के लिए अपने कपडे बदलने चली ,अभी  साड़ी हाथ में ली ही थी कि,शोर मचा राहुल(Mehboob - मेरा बेटा 2साल  का) बेहोश हो गया ,भागते-भागते पहुंची तो बेटे को उसकी दादी गोद मे ली थी और वो बेहोशी की हालत मे दादी का पुरा आँचल घोट  रहा था , बाराती मे एक डाक्टर थे वे बोले जल्दी से आपलोग इस  बच्चे को  अस्पताल ले  जाइए मामला  बहुत गंभीर है.... मैं और मेरे पति अपने बेटे के साथ अस्पताल गए ,इलाज हूआ....... , दोपहर से रात....... , रात से सुबह....... ,सुबह से दोपहर....... ,तब  बेटे को होश आया......... , और ये परेशानी मेरा बेटा बचपन से 16 साल के आयु तक भोगा.......... ,  इन चंद शब्दों से आप उन सालो के कष्ट को आंकलन कर पायें तो आज  के  मेरे इस पागलपन को समझ पायें......... हाँ-हाँ-हाँ........ हाँ-हाँ-हाँ........ " हक़ है पगलाने का "