देवनागरी में लिखें

                                                                                             देवनागरी में लिखें

Tuesday 23 April 2013

कैसे .



ना बहन थी ….
ना बेटी हुई ….
बहुत नाज़ों से ,
पाल रही थी ,
एक पोती की
नाज़ुक तमन्ना ….
मर्यादित मिठास
 जीवन में होता ....
अब मुश्किल में
जां आन पड़ी ….
कलेज़े में हुक बड़ी….
डर और आतंक के
स्याह समुंदर में
डूब उतरा रही हूँ ….
छ: महीने की पोती को
कैसे लाल-मिर्ची की
पुड़िया पकड़ाऊँगी ....
एक साल की बच्ची को
आखों में डालने वाला
स्प्रे पकड़ाऊँगी ....
डेढ़ साल की मुन्नी को स्पर्श ,
कैसा-कैसा (good-touch=bad-touch=secret-touch)
कैसे समझाऊँगी
दो साल की चुन्नी को
कटार कैसे थमाऊँगी
ढ़ाई साल की नन्ही को
तीन साल की
साढ़े तीन साल की
चार साल की
साढ़े चार साल की
माखौल तो ना उड़ाओ ....
बहुत शौक है सलाह देने का ....
सलाह कोई कारगर तो सुनाओ ….
समझु और समझाऊँ
शुक्रिया दूँ ...........

DSCN4973 - Copy

http://sarasach.com/poet-3/

A-A-P

http://www.nawya.in/hindi-sahitya/item/vibha 3.html  


Friday 19 April 2013

कब तक ?


कब तक ?
कब तक हम कागज़ काला करते रहेंगे ....
आखिर कब तक देश दहलता रहेगा ....
कब तक वे गाल बजाते रहेंगे .....
कौन जबाब देगा ....
कौन बताएगा ...
पाँच साल की बच्ची क्या पोशाक पहनी थी कि वो हवश की शिकार हुई
किस बॉय फ्रेंड के साथ देर रात को अय्यासी कर रही थी
कौन सा अंग आकर्षित किया कि उसके प्राइवेट पार्ट में 200ml का बोतल
और एक मोमबत्ती डालने की ललक पैदा हुई .....
???????????
बहुत मांग चुकी कड़ी-से कड़ी सज़ा
फांसी की सज़ा
अब तो एक ही मांग
बदला ऐसा जो रूह कापे
काट डालो प्राइवेट पार्ट क्यूँ कि  उसने ऐसा ही कुकर्म किया
फोड़ डालो दोनों आँखें
आंखो की ही खता थी
काट डालो दोनों हांथ उसी से पकड़ा होगा
छोड़ दो ,छोड़ दो बिलबिलाने के लिए सड़कों पर
उसके शरीर में कीड़े पड़े .........

Wednesday 17 April 2013

है कि नहीं ....




है कि नहीं  ……
बहुत गुस्सा में हैं  ……
है कि नहीं  ……
प्रेमी या प्रेमिका बे-वफ़ा निकले ....
पत्नी या पति मगरूर -जल्लाद निकले ....
स्वाभाविक प्रतिक्रिया है ,मेरे  दोस्त  ,
है कि नहीं ….
कोसो ना ,
पानी पी-पी के कोसो ....
जितनी गालियाँ देनी है , दो
उनका नाम लेकर दो ना  …
एक की गलती की सज़ा ,
सारे कौम को क्यूँ दे रहे …
ना-इंसाफ़ी है ….
है कि नहीं ….
औरत के नाम पे कलंक ,
या ...
सारे मर्द एक जैसे कहने से ….
हमारे और रिश्ते भी तो
उसी दायरे में आ जाते हैं .…
है कि नहीं ….
माँ -मौसी ,दीदी-बुआ ,भाभी-चाची ,ताई -मामी ….
ताऊ-फूफा ,मौसा-चाचा ,मामा-पापा ,भाई-भतीजा ....
सभी को भी एक साथ
कोसना-श्रापना चाहेंगे ,नहीं ना  ,
है कि नहीं ….
माँ अच्छी या बुरी निकली तो
लो आप तो यशोदा-कैकई को ले कर बैठ गए ….
दोस्त मेरे
हमारे औलाद विष्णु अवतार नहीं हैं  ,
है कि नहीं .…
बेटा लायक या ना-लायक निकला ,
तो आप श्रवण को याद करने लगे ….
जहां तक मेरी अल्प-बुद्धि कहती है ,
कि वो शादी-शुदा नहीं और अल्पायु थे ….
है कि नहीं .…
बहू तो सभी को तभी भाती
जब वो सास को चौके से छुटकारा दिला कर बिस्तर पर  बैठा दे
डोली से उतरते ही ....
है कि नहीं ....
ननद के नखरे उठा उसे सजा-सवांर दे
डोली से उतरते ही ....
है कि नहीं
देवर के कपड़े धो सहेज दे
डोली से उतरते ही ....
है  कि  नहीं
ससुर को वैसे तो कोई प्रॉब्लेम नहीं होती लेकिन ध्यान तो देना ही चाहिए
डोली से उतरते ही ...।
है कि नहीं ....
छोटे से पौधे को आप गमले में लगाते हैं तो
पूरा ध्यान(care) देते हैं ....
है कि नहीं ....

कड़ी धूप में नहीं रखते
 कहीं जल ना जाए ,
है कि नहीं ....
ज्यादा जल नहीं डालते
 कहीं गल ना जाये  ,
है कि नहीं ....

बहू तो विशाल वृक्ष के रूप में आई है....

अतिरिक्त (Extra) देखभाल(Care) की जरूरत होगी ना
पनपने फूलने के लिए

है कि नहीं ….
बोलो - बोलो है कि नहीं ....

http://sarasach.com/poet/ 

Monday 15 April 2013

सार


Senior Deputy Collector jailed for raping his 15-years-old daughter on Saturday(13-04-2013) at Patna
कल काला दिन  .....
बाप जन्म देता करता सार                                                सार = पालन-पोषण
कैसे मर जाता उसके आंखो का सार                                          सार = पानी
बन जाता सारमेय कर ना पता सार                          सारमेय=कुत्ता       सार = रक्षा
कर देता अपने ही धी का दामन तार -तार
ऐसे में हो जाती मानवता की हार
सारा समाज हदप्रद हो जाता शर्मसार
क्यूँ नहीं कर पाता काम-इच्छा से रार
कामान्ध हो भूल जाता लोकाचार
इस गलती का एक ही दंड हो संगसार
हर गली हर पर नुक्कड़ पर छपवा दो इश्तेहार
सब संग जब मिल चिल्लायेगें तभी निकलेगा सार                सार = परिणाम




तीनों का स्वभाव एक जैसे हैं ...



चैत्र शुक्ल पक्ष की पंचमी
इसी दिन को
बहुत -बहुत -बहुत साल पहले मेरी सासु माँ
बहुत -बहुत साल पहले मेरे पति
और
बहुत साल पहले मेरे सुपुत्र का
जन्म हुआ था ....
आज हिन्दी तिथि के अनुसार उन तीनों का जन्मदिन है
और
English date के अनुसार मेरे पति का ....
समय बदलता है ...
पीढ़ी दर पीढ़ी बदल जाती है ....
लेकिन ....
सोच और स्वभाव ...
हर युग में ...
हर पीढ़ी में ...
एक ही सोच कायम रहती है ..
ये चरितार्थ करते हैं
इन तीनो का स्वभाव ...
क्यूँ कि एक जैसे हैं ........

Wednesday 10 April 2013

तो


तो ....
शादी आगरा का पेठा ....
जो खाये वो भी पछताए ....
जो ना खाये वो भी पछताए ...


तो .....
नहीं खाये .....
तो ....
ऊपर वाला ही मालिक ...

 जब खा ही लिए ....
तो ....
क्यूँ पछताए ....


शादी पूरी जिंदगी का एक पड़ाव ,एक अध्याय , एक चैप्टर .....
शादी सफल है तो दाल - रोटी खाओ ,प्रभु का गुण गाओ ....
घर में ही काशी और काबा ...
कठौती में गंगा ....
जशन मनाओ ....

और
असफल है .....
तो
असफलता तो चुनौती है ....
एक नया इतिहास रचो ....
दुर्घटना हमेशा दूसरे की गलती से होती है ...

तो ....
दूसरे की गलती के लिए खुद को दण्ड देना ....
बुद्धिमानी तो ही नहीं सकती ....
ना ये ऐसा पड़ाव है कि रुक कर मातम मनाया जाए ....
रुके रहने पर जंग और काई की पूरी संभावना होती है ....
और
फिर जंग हटाने के लिए एक नई जंग ....

तो ....
रुकने के पहले जंग क्यूँ नहीं ....
ज़िंदगी जब खत्म नहीं होती तो सोच पर हावी(DOMINATE) क्यूँ ....
एक के गलत होने से सारे कायनात गलत नहीं होता ....
नहीं तो हमारे सारे रिश्ते गलत हो जाएगें ....
अनुभव कड़वा-कसैला है ....

तो ....
फायेदेमंद ही होगा ....
कुनैन-करैला और नीम का अनुभव तो यही बताता है ....

तो .............................


Tuesday 9 April 2013

सीख




जो सीखना-सीखाना है सीख लो
लेकिन झूठ की उम्र
लम्बी नहीं होती याद रख लो !!

वोर्नविटा का प्रचार (दौड़ लगाते माँ और बेटे) मुझे अतीत में ले गया .....
याद आई बचपन की कहानी टुकड़ो-टुकड़ो में बिखरी ....
थोडी खलिश है थोडा सा है गम
तन्हाई का एहसास हुआ थोडा कम ....

बेटे को जीत दिलाने के लिए कितनी कोशिश करनी होती है एक माँ को ....
चाचा -बुआ का प्यारा दादा-दादी का दुलारा अपने पिता के आँखों का तारा .....
उस बच्चे के खेलने के संगी दादी -बुआ ....
माँ के कलेजे का टुकड़ा को जब सब ये समझाते होगें कि Step-Mother ....
इकलौता बच्चा सब समझते ,अभी उसका जीत जाना ही उचित समझते ....
कुछ वर्षों के बाद घर से बहुत दूर नौकरी पर जाना हुआ उस परिवार का ....
घर-परिवार से दूर जब हक़ीक़त से सामना हुआ तो वो बच्चा बिखरता नज़र आया ....

बहुत ही छोटा सा गाँव ....
एक ऑफिस एक ऑफिसर और उनके साथ काम करनेवाले कुछ स्टाफ ....
उनलोगों के रहने के लिए कुछ मकान .....

ऑफिसर का एक प्यारा सा बेटा ....
बेटा जब खेलने निकलता तो उसके साथ खेलने वाले होते स्टाफ के बच्चे   जिन्हें चें  सख़्त हिदायत थी कि साहब का बाबू है ,इसलिए उसे हराना नहीं है ...। मेमसाहब स्टाफ के बच्चों को बहुत सीखातीसिखाती कि खेल में सब बराबर होते हैं ,ईमानदारी से खेलो तुम जीतते हो तो उसे हराओ लेकिन मेमसाहब कि बातों का कोई असर नहीं होता ..। सब हँस कर रह जाते .....। उल्टा घर में मेमसाहब को ही डांट पड़ती ...।
कुछ वर्षों के बाद साहब नौकरी के कारण कई छोटे बड़े गाँव घूमते हुये एक बड़े शहर में आए ..। यहाँ साहब के बेटे के साथ खेलने वाले थे पड़ोसी के बच्चे ...। यहाँ साहब के बेटे को हारने का मौका मिलता ...। हारने के बाद वो काफी रोता चिल्लाता खेल बिगाड़ देता हिंसक हो जाता
 उसे तो बहुत ही ज्यादा परेशानी हुई ....। दादी-पापा के प्यार में पला बच्चा हारना कहाँ सीखा था ...। दादी-पापा दूसरे बच्चों का ही दोष निकलते उन्हे ही समझाते कि मेरे बच्चे को ही जीतने दो ......। लेकिन वो गलत था न ?
तब उसकी माँ निर्णय की कि  वो अपने उस बच्चे के साथ खेलेगी ..। लूडो-चेश-कैरमबोर्ड सब खेलती और उसे हराती ....। हारने के बाद हड़कंप मच जाता ...। बच्चा अलग चिल्लाता और घर के बाकी लोग अलग ...। उस माँ को Step-Mother पुकारा जाने लगा .....
 माँ पर कोई असर नहीं होता .... रोज अपने को समझा लेती .....

ये नादाँ दिल सँभल जाओ
जरा सा भावुक हुआ
और अपने ही
दिमाग पर से
संतुलन गड़बड़ हुआ ....


लेकिन धीरे-धीरे तब बच्चा हारना सीखने लगा और उस बच्चे को खेल में मज़ा भी लेने लगा ,क्यूँ कि जीतने के लिए उसे प्रयास करना पड़ता और उत्सुकता बढ़ी रहती ....
प्यार के एक और पहलु से रूबरू होने का अहसास हुआ उसे .... और अपने माँ के करीब आने लगा .....
प्यार तो सबसे मिल ही रहा था ..... माँ से मिला अनुशासन ,संजीदगी,जिम्मेदारी,दुनियादारी और हारने के बाद जितने के लिए प्रयास करने का जज्बा !!

फिर तो माँ को कहना पडा .....

गुजर चुकी हूँ कब,क्यूँ ,कहाँ ,कैसे ,किसलिए की राहों से
नित नए अनजाने अनगिनत अनसुलझे अनंत सवालों से !!





Monday 11 March 2013

हौसले





दुःख के बादल हैं मँडाराते ,
आंसुओं में पिघल जाने के लिए ....
कई मुश्किलें हैं विचलाते ,
हौसले आज़माने के लिए ....
उलझनों में ना हैं ,उलझते ,
लड़ते हैं ,सुलझाने के लिए ....
पतझड़ -अंधेरो से नहीं हैं घबराते ,
जिंदगी मिली है ,नहीं खोने के लिए ....




Wednesday 27 February 2013

राष्ट्र हित में आप भी जुड़िये इस मुहीम से -



राष्ट्र हित में आप भी जुड़िये इस मुहीम से -


सन 1945 मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तथाकथित हवाई दुर्घटना या उनके जापानी सरकार के सहयोग से 1945 के बाद सोवियत रूस मे शरण लेने या बाद मे भारत मे उनके होने के बारे मे हमेशा ही सरकार की ओर से गोलमोल जवाब दिया गया है उन से जुड़ी हुई हर जानकारी को "राष्ट्र हित" का हवाला देते हुये हमेशा ही दबाया गया है ... 'मिशन नेताजी' और इस से जुड़े हुये मशहूर पत्रकार श्री अनुज धर ने काफी बार सरकार से अनुरोध किया है कि तथ्यो को सार्वजनिक किया जाये ताकि भारत की जनता भी अपने महान नेता के बारे मे जान सके पर हर बार उन को निराशा ही हाथ आई !

मेरा आप से एक अनुरोध है कि इस मुहिम का हिस्सा जरूर बनें ... भारत के नागरिक के रूप मे अपने देश के इतिहास को जानने का हक़ आपका भी है ... जानिए कैसे और क्यूँ एक महान नेता को चुपचाप गुमनामी के अंधेरे मे चला जाना पड़ा... जानिए कौन कौन था इस साजिश के पीछे ... ऐसे कौन से कारण थे जो इतनी बड़ी साजिश रची गई न केवल नेता जी के खिलाफ बल्कि भारत की जनता के भी खिलाफ ... ऐसे कौन कौन से "राष्ट्र हित" है जिन के कारण हम अपने नेता जी के बारे मे सच नहीं जान पाये आज तक ... जब कि सरकार को सत्य मालूम है ... क्यूँ तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया जाता ... जानिए आखिर क्या है सत्य .... अब जब अदालत ने भी एक समय सीमा देते हुये यह आदेश दिया है कि एक कमेटी द्वारा जल्द से जल्द इस की जांच करवा रिपोर्ट दी जाये तो अब देर किस लिए हो रही है ???

आप सब मित्रो से अनुरोध है कि यहाँ नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ और इस मुहिम का हिस्सा बने और अपने मित्रो से भी अनुरोध करें कि वो भी इस जन चेतना का हिस्सा बने !


Set up a multi-disciplinary inquiry to crack Bhagwanji/Netaji mystery



 यहाँ ऊपर दिये गए लिंक मे उल्लेख किए गए पेटीशन का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है :-

सेवा में,
अखिलेश यादव,
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश सरकार
लखनऊ

प्रिय अखिलेश यादव जी,

इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर, आप भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री इस स्थिति में हैं कि देश के सबसे पुराने और सबसे लंबे समय तक चल रहे राजनीतिक विवाद को व्यवस्थित करने की पहल कर सकें| इसलिए देश के युवा अब बहुत आशा से आपकी तरफ देखते हैं कि आप माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के हाल ही के निर्देश के दृश्य में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाग्य की इस बड़ी पहेली को सुलझाने में आगे बढ़ेंगे|
जबकि आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में | 1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने उस संत के सामान को सुरक्षित रखने का अंतरिम आदेश दिया।

भगवनजी, जो अब गुमनामी बाबा के नाम से बेहतर जाने जाते है, एक पूर्ण वैरागी थे, जो नीमसार, अयोध्या, बस्ती और फैजाबाद में किराए के आवास पर रहते थे। वह दिन के उजाले में कभी एक कदम भी बाहर नहीं रखते थे,और अंदर भी अपने चयनित अनुयायियों के छोड़कर किसी को भी अपना चेहरा नहीं दिखाते थे। प्रारंभिक वर्षों में अधिक बोलते नहीं थे परन्तु उनकी गहरी आवाज और फर्राटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदुस्तानी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे वह बचना चाहते थे। जिन लोगों ने उन्हें देखा उनका कहना है कि भगवनजी बुजुर्ग नेताजी की तरह लगते थे। वह अपने जर्मनी, जापान, लंदन में और यहां तक कि साइबेरियाई कैंप में अपने बिताए समय की बात करते थे जहां वे एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की एक मनगढ़ंत कहानी "के बाद पहुँचे थे"। भगवनजी से मिलने वाले नियमित आगंतुकों में पूर्व क्रांतिकारी, प्रमुख नेता और आईएनए गुप्त सेवा कर्मी भी शामिल थे।

2005 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थापित जस्टिस एम.के. मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट में पता चला कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 1945 में ताइवान में नहीं हुई थी। सूचनाओं के मुताबिक वास्तव में उनके लापता होने के समय में वे सोवियत रूस की ओर बढ़ रहे थे।

31 जनवरी, 2013 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ललिता बोस और उस घर के मालिक जहां भगवनजी फैजाबाद में रुके थे, की संयुक्त याचिका के बाद अपनी सरकार को भगवनजी की पहचान के लिए एक पैनल की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देशन दिया।

जैसा कि यह पूरा मुद्दा राजनैतिक है और राज्य की गोपनीयता के दायरे में है, हम नहीं जानते कि गोपनीयता के प्रति जागरूक अधिकारियों द्वारा अदालत के फैसले के जवाब में कार्यवाही करने के लिए किस तरह आपको सूचित किया जाएगा। इस मामले में आपके समक्ष निर्णय किये जाने के लिए निम्नलिखित मोर्चों पर सवाल उठाया जा सकता है:

1. फैजाबाद डीएम कार्यालय में उपलब्ध 1985 पुलिस जांच रिपोर्ट के अनुसार भगवनजी नेताजी प्रतीत नहीं होते।

2. मुखर्जी आयोग की खोज के मुताबिक भगवनजी नेताजी नहीं थे।

3. भगवनजी के दातों का डीएनए नेताजी के परिवार के सदस्यों से प्राप्त डीएनए के साथ मेल नहीं खाता।

वास्तव मे, फैजाबाद एसएसपी पुलिस ने जांच में यह निष्कर्ष निकाला था, कि “जांच के बाद यह नहीं पता चला कि मृतक व्यक्ति कौन थे" जिसका सीधा अर्थ निकलता है कि पुलिस को भगवनजी की पहचान के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला।

हम इस तथ्य पर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकला है कि "किसी भी ठोस सबूत के अभाव में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भगवनजी नेताजी थे"। दूसरे शब्दों में, आयोग ने स्वीकार किया कि नेताजी को भगवनजी से जोड़ने के सबूत थे, लेकिन ठोस नहीं थे।

आयोग को ठोस सबूत न मिलने का कारण यह है कि फैजाबाद से पाए गए भगवनजी के तथाकथित सात दातों का डी एन ए, नेताजी के परिवार के सदस्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए रक्त के नमूनों के साथ मैच नहीं करता था। यह परिक्षण केन्द्रीय सरकार प्रयोगशालाओं में किए गए और आयोग की रिपोर्ट में केन्द्र सरकार के बारे मे अच्छा नहीं लिखा गया। बल्कि, यह माना जाता है कि इस मामले में एक फोरेंसिक धोखाधडी हुई थी।
महोदय, आपको एक उदाहरण देना चाहेंगे कि बंगाली अखबार "आनंदबाजार पत्रिका" ने दिसंबर 2003 में एक रिपोर्ट प्रकाशित कि कि भगवनजी ग्रहण दांत पर डीएनए परीक्षण नकारात्मक था। बाद में, "आनंदबाजार पत्रिका", जो शुरू से ताइवान एयर क्रेश थिओरी का पक्षधर रहा है, ने भारतीय प्रेस परिषद के समक्ष स्वीकार किया कि यह खबर एक "स्कूप" के आधार पर की गयी थी। लेकिन समस्या यह है कि दिसंबर 2003 में डीएनए परीक्षण भी ठीक से शुरू नहीं किया गया था। अन्य कारकों को ध्यान में ले कर यह एक आसानी से परिणाम निकलता है कि यह "स्कूप" पूर्वनिर्धारित था।

जाहिर है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश, एम.के. मुखर्जी ऐसी चालों के बारे में जानते थे और यही कारण है कि 2010 में सरकार के विशेषज्ञों द्वारा आयोजित डी एन ए और लिखावट के परिक्षण के निष्कर्षों की अनदेखी करके,उन्होंने एक बयान दिया था कि उन्हें "शत प्रतिशत यकीन है" कि भगवनजी वास्तव में नेताजी थे।यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि सर्वोच्च हस्तलेख विशेषज्ञ श्री बी लाल कपूर ने साबित किया था कि भगवनजी की अंग्रेजी और बंगला लिखावट नेताजी की लिखावट से मेल खाती है।

भगवनजी कहा करते थे की कुछ साल एक साइबेरियाई केंप में बिताने के बाद 1949 में उन्होंने सोवियत रूस छोड़ दिया और उसके बाद गुप्त ऑपरेशनो में लगी हुई विश्व शक्तियों का मुकाबला करने में लगे रहे। उन्हें डर था कि यदि वह खुले में आयेंगे तो विश्व शक्तियां उनके पीछे पड़ जायेंगीं और भारतीय लोगो पर इसके दुष्प्रभाव पड़ेंगे। उन्होंने कहा था कि “मेरा बाहर आना भारत के हित में नहीं है”। उनकी धारणा थी कि भारतीय नेतृत्व के सहापराध के साथ उन्हें युद्ध अपराधी घोषित किया गया था और मित्र शक्तियां उन्हें उनकी 1949 की गतिविधियों के कारण अपना सबसे बड़ा शत्रु समझती थी।

भगवनजी ने यह भी दावा किया था कि जिस दिन 1947 में सत्ता के हस्तांतरण से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाएगा, उस दिन भारतीय जान जायेंगे कि उन्हें गुमनाम/छिपने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा।

खासा दिलचस्प है कि , दिसम्बर 2012 में विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय, लंदन, ने हम में से एक को बताया कि वह सत्ता हस्तांतरण के विषय में एक फ़ाइल रोके हुए है जो "धारा 27 (1) (क) सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम (अंतरराष्ट्रीय संबंधों) के तहत संवेदनशील बनी हुई है और इसका प्रकाशन संबंधित देशों के साथ हमारे संबंधों में समझौता कर सकता है" ।

महोदय, इस सारे विवरण का उद्देश्य सिर्फ इस मामले की संवेदनशीलता को आपके प्रकाश में लाना है। यह बात वैसी नहीं है जैसी कि पहली नजर में लगती है। इस याचिका के हस्ताक्षरकर्ता चाहते है कि सच्चाई को बाहर आना चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि भगवनजी कौन थे। वह नेताजी थे या कोई "ठग" जैसा कि कुछ लोगों ने आरोप लगाया है? क्या वह वास्तव में 1955 में भारत आने से पहले रूस और चीन में थे, या नेताजी को रूस में ही मार दिया गया था जैसा कि बहुत लोगों का कहना है।

माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति वीरेन्द्र कुमार दीक्षित, भगवनजी के तथ्यों के विषय में एक पूरी तरह से जांच के सुझाव से काफी प्रभावित है। इसलिए हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रशासन को अदालत के निर्णय का पालन करने हेतू आदेश दें। आपकी सरकार उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों और उच्च अधिकारियों की एक टीम को मिलाकर एक समिति की नियुक्ति करे जो गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी की पहचान के सम्बन्ध में जांच करे।

यह भी अनुरोध है कि आपकी सरकार द्वारा संस्थापित जांच -

1. बहु - अनुशासनात्मक होनी चाहिए, जिससे इसे देश के किसी भी कोने से किसी भी व्यक्ति को शपथ लेकर सूचना देने को वाध्य करने का अधिकार हो । और यह और किसी भी राज्य या केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से सरकारी रिकॉर्ड की मांग कर सके।

2. सेवानिवृत्त पुलिस, आईबी, रॉ और राज्य खुफिया अधिकारी इसके सदस्य हो। सभी सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों, विशेष रूप से उन लोगों को, जो खुफिया विभाग से सम्बंधित है,उत्तर प्रदेश सरकार को गोपनीयता की शपथ से छूट दे ताकि वे स्वतंत्र रूप से सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों के लिए अपदस्थ हो सकें।

3. इसके सदस्यों में नागरिक समाज के प्रतिनिधि और प्रख्यात पत्रकार हो ताकि पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सके। ये जांच 6 महीने में खत्म की जानी चाहिए।

4. केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा आयोजित नेताजी और भगवनजी के बारे में सभी गुप्त रिकॉर्ड मंगवाए जाने पर विचार करें। खुफिया एजेंसियों के रिकॉर्ड को भी शामिल करना चाहिए। उत्तर प्रदेश कार्यालयों में खुफिया ब्यूरो के पूर्ण रिकॉर्ड मंगावाये जाने चाहिए और किसी भी परिस्थिति में आईबी स्थानीय कार्यालयों को कागज का एक भी टुकड़ा नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

5.सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भगवनजी की लिखावट और अन्य फोरेंसिक सामग्री को किसी प्रतिष्ठित अमेरिकन या ब्रिटिश प्रयोगशाला में भेजा जाये.

हमें पूरी उम्मीद है कि आप, मुख्यमंत्री और युवा नेता के तौर पर दुनिया भर में हम नेताजी के प्रसंशकों की इस इच्छा को अवश्य पूरा करेंगे |

सादर
आपका भवदीय
अनुज धर
लेखक "India's biggest cover-up"

चन्द्रचूर घोष
प्रमुख - www.subhaschandrabose.org और नेताजी के ऊपर आने वाली एक पुस्तक के लेखक


Thanks & Regards

Vibha Rani Shrivastava