देवनागरी में लिखें

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Tuesday 23 April 2013

कैसे .



ना बहन थी ….
ना बेटी हुई ….
बहुत नाज़ों से ,
पाल रही थी ,
एक पोती की
नाज़ुक तमन्ना ….
मर्यादित मिठास
 जीवन में होता ....
अब मुश्किल में
जां आन पड़ी ….
कलेज़े में हुक बड़ी….
डर और आतंक के
स्याह समुंदर में
डूब उतरा रही हूँ ….
छ: महीने की पोती को
कैसे लाल-मिर्ची की
पुड़िया पकड़ाऊँगी ....
एक साल की बच्ची को
आखों में डालने वाला
स्प्रे पकड़ाऊँगी ....
डेढ़ साल की मुन्नी को स्पर्श ,
कैसा-कैसा (good-touch=bad-touch=secret-touch)
कैसे समझाऊँगी
दो साल की चुन्नी को
कटार कैसे थमाऊँगी
ढ़ाई साल की नन्ही को
तीन साल की
साढ़े तीन साल की
चार साल की
साढ़े चार साल की
माखौल तो ना उड़ाओ ....
बहुत शौक है सलाह देने का ....
सलाह कोई कारगर तो सुनाओ ….
समझु और समझाऊँ
शुक्रिया दूँ ...........

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Friday 19 April 2013

कब तक ?


कब तक ?
कब तक हम कागज़ काला करते रहेंगे ....
आखिर कब तक देश दहलता रहेगा ....
कब तक वे गाल बजाते रहेंगे .....
कौन जबाब देगा ....
कौन बताएगा ...
पाँच साल की बच्ची क्या पोशाक पहनी थी कि वो हवश की शिकार हुई
किस बॉय फ्रेंड के साथ देर रात को अय्यासी कर रही थी
कौन सा अंग आकर्षित किया कि उसके प्राइवेट पार्ट में 200ml का बोतल
और एक मोमबत्ती डालने की ललक पैदा हुई .....
???????????
बहुत मांग चुकी कड़ी-से कड़ी सज़ा
फांसी की सज़ा
अब तो एक ही मांग
बदला ऐसा जो रूह कापे
काट डालो प्राइवेट पार्ट क्यूँ कि  उसने ऐसा ही कुकर्म किया
फोड़ डालो दोनों आँखें
आंखो की ही खता थी
काट डालो दोनों हांथ उसी से पकड़ा होगा
छोड़ दो ,छोड़ दो बिलबिलाने के लिए सड़कों पर
उसके शरीर में कीड़े पड़े .........

Wednesday 17 April 2013

है कि नहीं ....




है कि नहीं  ……
बहुत गुस्सा में हैं  ……
है कि नहीं  ……
प्रेमी या प्रेमिका बे-वफ़ा निकले ....
पत्नी या पति मगरूर -जल्लाद निकले ....
स्वाभाविक प्रतिक्रिया है ,मेरे  दोस्त  ,
है कि नहीं ….
कोसो ना ,
पानी पी-पी के कोसो ....
जितनी गालियाँ देनी है , दो
उनका नाम लेकर दो ना  …
एक की गलती की सज़ा ,
सारे कौम को क्यूँ दे रहे …
ना-इंसाफ़ी है ….
है कि नहीं ….
औरत के नाम पे कलंक ,
या ...
सारे मर्द एक जैसे कहने से ….
हमारे और रिश्ते भी तो
उसी दायरे में आ जाते हैं .…
है कि नहीं ….
माँ -मौसी ,दीदी-बुआ ,भाभी-चाची ,ताई -मामी ….
ताऊ-फूफा ,मौसा-चाचा ,मामा-पापा ,भाई-भतीजा ....
सभी को भी एक साथ
कोसना-श्रापना चाहेंगे ,नहीं ना  ,
है कि नहीं ….
माँ अच्छी या बुरी निकली तो
लो आप तो यशोदा-कैकई को ले कर बैठ गए ….
दोस्त मेरे
हमारे औलाद विष्णु अवतार नहीं हैं  ,
है कि नहीं .…
बेटा लायक या ना-लायक निकला ,
तो आप श्रवण को याद करने लगे ….
जहां तक मेरी अल्प-बुद्धि कहती है ,
कि वो शादी-शुदा नहीं और अल्पायु थे ….
है कि नहीं .…
बहू तो सभी को तभी भाती
जब वो सास को चौके से छुटकारा दिला कर बिस्तर पर  बैठा दे
डोली से उतरते ही ....
है कि नहीं ....
ननद के नखरे उठा उसे सजा-सवांर दे
डोली से उतरते ही ....
है कि नहीं
देवर के कपड़े धो सहेज दे
डोली से उतरते ही ....
है  कि  नहीं
ससुर को वैसे तो कोई प्रॉब्लेम नहीं होती लेकिन ध्यान तो देना ही चाहिए
डोली से उतरते ही ...।
है कि नहीं ....
छोटे से पौधे को आप गमले में लगाते हैं तो
पूरा ध्यान(care) देते हैं ....
है कि नहीं ....

कड़ी धूप में नहीं रखते
 कहीं जल ना जाए ,
है कि नहीं ....
ज्यादा जल नहीं डालते
 कहीं गल ना जाये  ,
है कि नहीं ....

बहू तो विशाल वृक्ष के रूप में आई है....

अतिरिक्त (Extra) देखभाल(Care) की जरूरत होगी ना
पनपने फूलने के लिए

है कि नहीं ….
बोलो - बोलो है कि नहीं ....

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Monday 15 April 2013

सार


Senior Deputy Collector jailed for raping his 15-years-old daughter on Saturday(13-04-2013) at Patna
कल काला दिन  .....
बाप जन्म देता करता सार                                                सार = पालन-पोषण
कैसे मर जाता उसके आंखो का सार                                          सार = पानी
बन जाता सारमेय कर ना पता सार                          सारमेय=कुत्ता       सार = रक्षा
कर देता अपने ही धी का दामन तार -तार
ऐसे में हो जाती मानवता की हार
सारा समाज हदप्रद हो जाता शर्मसार
क्यूँ नहीं कर पाता काम-इच्छा से रार
कामान्ध हो भूल जाता लोकाचार
इस गलती का एक ही दंड हो संगसार
हर गली हर पर नुक्कड़ पर छपवा दो इश्तेहार
सब संग जब मिल चिल्लायेगें तभी निकलेगा सार                सार = परिणाम




तीनों का स्वभाव एक जैसे हैं ...



चैत्र शुक्ल पक्ष की पंचमी
इसी दिन को
बहुत -बहुत -बहुत साल पहले मेरी सासु माँ
बहुत -बहुत साल पहले मेरे पति
और
बहुत साल पहले मेरे सुपुत्र का
जन्म हुआ था ....
आज हिन्दी तिथि के अनुसार उन तीनों का जन्मदिन है
और
English date के अनुसार मेरे पति का ....
समय बदलता है ...
पीढ़ी दर पीढ़ी बदल जाती है ....
लेकिन ....
सोच और स्वभाव ...
हर युग में ...
हर पीढ़ी में ...
एक ही सोच कायम रहती है ..
ये चरितार्थ करते हैं
इन तीनो का स्वभाव ...
क्यूँ कि एक जैसे हैं ........

Wednesday 10 April 2013

तो


तो ....
शादी आगरा का पेठा ....
जो खाये वो भी पछताए ....
जो ना खाये वो भी पछताए ...


तो .....
नहीं खाये .....
तो ....
ऊपर वाला ही मालिक ...

 जब खा ही लिए ....
तो ....
क्यूँ पछताए ....


शादी पूरी जिंदगी का एक पड़ाव ,एक अध्याय , एक चैप्टर .....
शादी सफल है तो दाल - रोटी खाओ ,प्रभु का गुण गाओ ....
घर में ही काशी और काबा ...
कठौती में गंगा ....
जशन मनाओ ....

और
असफल है .....
तो
असफलता तो चुनौती है ....
एक नया इतिहास रचो ....
दुर्घटना हमेशा दूसरे की गलती से होती है ...

तो ....
दूसरे की गलती के लिए खुद को दण्ड देना ....
बुद्धिमानी तो ही नहीं सकती ....
ना ये ऐसा पड़ाव है कि रुक कर मातम मनाया जाए ....
रुके रहने पर जंग और काई की पूरी संभावना होती है ....
और
फिर जंग हटाने के लिए एक नई जंग ....

तो ....
रुकने के पहले जंग क्यूँ नहीं ....
ज़िंदगी जब खत्म नहीं होती तो सोच पर हावी(DOMINATE) क्यूँ ....
एक के गलत होने से सारे कायनात गलत नहीं होता ....
नहीं तो हमारे सारे रिश्ते गलत हो जाएगें ....
अनुभव कड़वा-कसैला है ....

तो ....
फायेदेमंद ही होगा ....
कुनैन-करैला और नीम का अनुभव तो यही बताता है ....

तो .............................


Tuesday 9 April 2013

सीख




जो सीखना-सीखाना है सीख लो
लेकिन झूठ की उम्र
लम्बी नहीं होती याद रख लो !!

वोर्नविटा का प्रचार (दौड़ लगाते माँ और बेटे) मुझे अतीत में ले गया .....
याद आई बचपन की कहानी टुकड़ो-टुकड़ो में बिखरी ....
थोडी खलिश है थोडा सा है गम
तन्हाई का एहसास हुआ थोडा कम ....

बेटे को जीत दिलाने के लिए कितनी कोशिश करनी होती है एक माँ को ....
चाचा -बुआ का प्यारा दादा-दादी का दुलारा अपने पिता के आँखों का तारा .....
उस बच्चे के खेलने के संगी दादी -बुआ ....
माँ के कलेजे का टुकड़ा को जब सब ये समझाते होगें कि Step-Mother ....
इकलौता बच्चा सब समझते ,अभी उसका जीत जाना ही उचित समझते ....
कुछ वर्षों के बाद घर से बहुत दूर नौकरी पर जाना हुआ उस परिवार का ....
घर-परिवार से दूर जब हक़ीक़त से सामना हुआ तो वो बच्चा बिखरता नज़र आया ....

बहुत ही छोटा सा गाँव ....
एक ऑफिस एक ऑफिसर और उनके साथ काम करनेवाले कुछ स्टाफ ....
उनलोगों के रहने के लिए कुछ मकान .....

ऑफिसर का एक प्यारा सा बेटा ....
बेटा जब खेलने निकलता तो उसके साथ खेलने वाले होते स्टाफ के बच्चे   जिन्हें चें  सख़्त हिदायत थी कि साहब का बाबू है ,इसलिए उसे हराना नहीं है ...। मेमसाहब स्टाफ के बच्चों को बहुत सीखातीसिखाती कि खेल में सब बराबर होते हैं ,ईमानदारी से खेलो तुम जीतते हो तो उसे हराओ लेकिन मेमसाहब कि बातों का कोई असर नहीं होता ..। सब हँस कर रह जाते .....। उल्टा घर में मेमसाहब को ही डांट पड़ती ...।
कुछ वर्षों के बाद साहब नौकरी के कारण कई छोटे बड़े गाँव घूमते हुये एक बड़े शहर में आए ..। यहाँ साहब के बेटे के साथ खेलने वाले थे पड़ोसी के बच्चे ...। यहाँ साहब के बेटे को हारने का मौका मिलता ...। हारने के बाद वो काफी रोता चिल्लाता खेल बिगाड़ देता हिंसक हो जाता
 उसे तो बहुत ही ज्यादा परेशानी हुई ....। दादी-पापा के प्यार में पला बच्चा हारना कहाँ सीखा था ...। दादी-पापा दूसरे बच्चों का ही दोष निकलते उन्हे ही समझाते कि मेरे बच्चे को ही जीतने दो ......। लेकिन वो गलत था न ?
तब उसकी माँ निर्णय की कि  वो अपने उस बच्चे के साथ खेलेगी ..। लूडो-चेश-कैरमबोर्ड सब खेलती और उसे हराती ....। हारने के बाद हड़कंप मच जाता ...। बच्चा अलग चिल्लाता और घर के बाकी लोग अलग ...। उस माँ को Step-Mother पुकारा जाने लगा .....
 माँ पर कोई असर नहीं होता .... रोज अपने को समझा लेती .....

ये नादाँ दिल सँभल जाओ
जरा सा भावुक हुआ
और अपने ही
दिमाग पर से
संतुलन गड़बड़ हुआ ....


लेकिन धीरे-धीरे तब बच्चा हारना सीखने लगा और उस बच्चे को खेल में मज़ा भी लेने लगा ,क्यूँ कि जीतने के लिए उसे प्रयास करना पड़ता और उत्सुकता बढ़ी रहती ....
प्यार के एक और पहलु से रूबरू होने का अहसास हुआ उसे .... और अपने माँ के करीब आने लगा .....
प्यार तो सबसे मिल ही रहा था ..... माँ से मिला अनुशासन ,संजीदगी,जिम्मेदारी,दुनियादारी और हारने के बाद जितने के लिए प्रयास करने का जज्बा !!

फिर तो माँ को कहना पडा .....

गुजर चुकी हूँ कब,क्यूँ ,कहाँ ,कैसे ,किसलिए की राहों से
नित नए अनजाने अनगिनत अनसुलझे अनंत सवालों से !!