देखते देखते ... पढ़ते लिखते ... पल पल गुजरते ... पाँच साल गुजर गये ... ब्लॉग जगत में आये ....
सीखने की उम्र तैय नहीं होती ... प्रमाणित करने में जुटी हूँ ....
बुढ़ापा ..... अकेलापन ... रो धो के काटने के लिए नहीं मिला होता है
रोज सीखती हूँ ... रोज नये दिन नई बातें ....
सुख "अ" सीखने की ... अ = हाइकु
नवजाताक्षि
खोलना व मूँदना
मेघ में तारे ।
दौड़ लगाता
धावक तन्हा क्षेत्र
रक्तिम लिली ।
सर्पीली राहें
रंग रोशन छटा
इन्द्रधनुषी ।
चनिया चोली
भू धारे सतरंगी
रचे रंगोली ।
खुशी "ब" लिखने की ... ब = वर्ण पिरामिड
स्व
रमे
शगुन
पौ फटते
अक्स पे जमे
कर हमदम
श्रीराम सरगम
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सो
रोध
स्व क्रोध
मुक्ति बोध
हे राम शोध
सत्यार्थ प्रकाश
जगत हिताकाश
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*ण
मति
ना प्रश्न
काल परे
उर्जा ढ़ालती
भू ,माँ ,अम्बे रत्न
वात्सल्य चिरंतन
*ण=निर्णय
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ले
झट
माँ-अंक
फैला नभ
भर लो दंभ
सुन कराहट
भवानी आती खट
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हर्ष "स" = लघु कथा
“फांस”
नवरात्र में सपरिवार सदस्याओं के लिए महिला क्लब में डांडिया आयोजन रखा गया था। अभी चंद महीने पहले ही क्लब की सदस्या बनी थी गंगा। पिछले कई वर्षों से ; मेला की भीड़ में अकेली जाने का साहस नहीं जुटा पाने के कारण , वो बाहर निकलती ही नहीं थी।
इस बार कई लोगों का साथ पाकर डांडिया आयोजन में गई। इस अंदाजा से कि रात्रि खाने तक लौट आयेगी क्यों कि बहुत बार कहने के बाद भी उसके पति उसके साथ जाने के लिए तैयार नहीं थे।
डांडिया आयोजन से लौटी भी हड़बड़ा कर जल्दी ही । लेकिन फ्लाई ओवर पर ढ़ाई घण्टे जाम में फँस कर घर लौटते लौटते बारह सवा बारह हो गए।
घर में ज्वालामुखी प्रतीक्षित था पति के रूप में । वो समझ नहीं पा रही थी कि जो आदमी 35 साल के शादी शुदा जिंदगी में 40 बार तो जरूर बिना कुछ बताये कि कहाँ जा रहे हैं ,किन लोगों के संग रहेंगे , कब लौटेंगे रात के ढ़ाई तीन बजे या कभी कभी सुबह तक गायब रहा । वो आदमी इतना फट कैसे सकता है कि "औरत मर्द की पटदारी कैसे कर सकती है ।"
अ ब स ......
12 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 14 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह बहुत सुन्दर ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "पहचान तो थी - पहचाना नहीं: सन्डे की ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
इस विधा पर तो महारत हासिल है आपको दीदी!! कमाल है!
वाह!! सही बोला बड़े भैया ने !!
अ औरब अच्छे लगे पर आपकी लघुकथा में समाज की वास्तविकता है वह सबसे अच्छी लगी.
अभी तीन तलाक़वाली बात पर एक प्रतिक्रिया थी-'तो फिर औरतें हमसे डरेंगी कैसे ?'
बहुत खूबसूरत सृजन !
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