सूरज बादलो के ओट में छिप जाए ,रात तो न होती .....
रिश्तो में टकराहट हो तो ,रिश्ते नष्ट तो नहीं होते .....
खैर .... ! कुछ दिनों में दादी-पोते में सुलह हुआ .... जब पोते ने .....
और
http://vranishrivastava.blogspot.in/2012_03_01_archive.html
16 - 3 - 2012 .....
आज दादी की मौत हो गई -----
17 - 3 - 2012 .....
पोता उनका अंतिम दर्शन करने आया .....
जब दाह-संस्कार हो गए ..... तब पोता अपने माँ के कंधे पर सर रख , रोते हुए बोला :- दादी अपने हांथों से मुझे खाना खिलाती थी आज मैं उन्हें जला दिया ..... ऐसा क्यों होता है.... माँ के पास कोई उत्तर नहीं था ..... और अब सब बेमानी हो गया .....
http://vranishrivastava.blogspot.in/2011/11/blog-post_27.हटमल
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अब बस और ..... ?
10 comments:
ज़िन्दगी यूँ हीं एक दिन बेमानी हो जाती है पर जीते जी लोग लचीले नहीं हो पाते ! कब किसकी बारी , कौन जाने - बुद्ध का भय बुद्ध का संशय बुद्ध का ठहराव - इसी से उत्त्पन्न हुआ
जीवन की इस सच्चाई को साथ किये जीना ही बेहतर .सार्थक लेखन है आपका |
सार्थक पोस्ट, आभार.
सूरज बादलो के ओट में छिप जाए ,रात तो न होती.
रिश्तो में टकराहट हो तो ,रिश्ते नष्ट तो नहीं होते,
और अब सब बेमानी हो गया .....
बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,सुन्दर सार्थक रचना...
विभा जी,..आपने तो पोस्ट में आना ही बंद कर दिया,आइये स्वागत है
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
जीवन की सच्चाई को उजागर करती सार्थक पोस्ट..
SACH ME ....DADI JI KI HRITYU PAR DUKH HAI AUR US SE BHI JYADA IS BAAT KA KI JIS PREM KO VO JEE SAKTI THI USE KHUD KI VAJAH SE NAHI JEE PAYI....SACH ME JEEVAN KA KOI THIKANA NAHI...MAGAR JEETE JEE KAHAN LOG SAMAJHATE HAIN
yahi to antim sach hai.....hme sb kuchh chhod kr jana hota hai....
Nirbhay swagat kro mritu ka mirtu ak hai vishram sathal.
जीवन का सच तो यही है ...
jindagi mane dukh hi dukh:(
ज़िंदगी की शास्वत सत्य...
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