देवनागरी में लिखें

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Saturday, 22 October 2011

अँधेरे से उजाले की ओर

साल में एक दिन दीप जला कर
बाहर के अँधेरे को मिटाते ?
अमावस्या तो हर महीने आती है अँधेरा ले कर !
हम अपने अन्दर के अँधेरे को क्यों नहीं मिटाते ?
जो हमें रोज मिटा रही है !

5 comments:

हरकीरत ' हीर' said...

sunder vichar ....

shubhkamnayein ....!!

विभा रानी श्रीवास्तव said...

bahut-bahut shukriya...:)

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही अच्छा संदेश!

सादर

रश्मि प्रभा... said...

मूल तो अन्दर है ... उसी तम को मिटाना है
दिवाली की शुभकामनायें

Anonymous said...

उम्र के इस पड़ाव पर क्या हम इस अँधेरे से लड़ नहीं सकते .. शायद हाँ ! फिर चलें उजाले की ओर! हम साथ हैं| संगीता गोविल