देवनागरी में लिखें

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Thursday 12 January 2012

" रिश्ते " या " दिल " , शीशा होते है.... !!

सुनती आई हूँ , " रिश्ते " या " दिल  " ,शीशे ( handal with care , सावधानी हटी ,दुर्घटना घटी ) की तरह होते हैं |
लेकिन  कोई   ऐ   नही  बता  रहा   , किस शीशे की तरह ,
लैम्प-लालटेन के चिमनी की तरह ,  या शीशे के गिलास-बर्तन की तरह ,
या फिर उस दर्पण की शीशे की तरह , जिस में हम अपना चेहरा देखते हैं..... |
जो  भी  शीशे का  सामान  , हम ईस्तमाल  करते  हैं  , वह  एक  न  एक  दिन  टूट  जाता  है  और  हम  उसे  उठा   कर  फ़ेंक  देते   हैं  ,  क्योकि  वह  हमारे किसी  काम  का  नहीं  रह  जाता  | लैम्प-लालटेन के चिमनी  ,  अगर  टुटा   हों  ,  वह  रौशनी  नहीं  होने  देगा  |
शीशे के गिलास-बर्तन , tute hon............ ????
 दर्पण का  शीशा  टूटा  हो  , उसमे  चेहरा  देखना  , अपशगुन  माना  जाता  है.....  |
तो  फिर ऐसे  रिश्ते का  क्या  हो............. ?
एक लड़की शादी करके ,ससुराल आती है | चौथे दिन सास-बहु बाते करती हैं , सास :-- तुम्हारी माँ (  माँ क्या है , सास तो रही नहीं , औरत के नाम पर कलंक है ) की तरह हूँ.... |  तुम मुझसे अपनी सारी बातें कर सकती हो.... |
बहु :-- आपसे मेरी विनती है , मुझसे कभी कोई गलती हो जाए , आपको जो भी , जिस तरह का भी  सजा  देनी  हो  दीजिएगा  ,  लेकिन  मेरे  मैके  वालों से शिकायत नहीं कीजिएगा.... |
दो साल जैसे-तैसे सब ठीक चला.... | दो साल के बाद से , बहु की गलती हो या न हो , सास , बहु के मैके से बाप-भाई को बुलाती , और बहु को ले जाने का आदेश देती.... | बहु के मैके वाले अपनी इज्जत बचाने या बेटी की शादी बचाने के कारण , उसे नहीं ले जाते.... | मैके वालों के नहीं ले जाने पर बहु को अनेको तरह से शारीरिक प्रताड़ना मिलती.... | करीब ये सिलसिला बाईस साल चला... | बहु की ईच्छा ( बहु की कमजोरी थी ) का मान , सास रखती , तो सास-बहु का रिश्ता मधुर होता.... | सास को लगा होगा , इसी तरह बहु को डरा कर रखा जा सकता है.... | लेकिन उलटा हुआ , बहु विद्रोही होती गई.... |
बहु को एक बेटा था.... | बहु कई बार सोची , सब छोड़ कर अलग हो जाए , लेकिन तब उसे अपने बेटे को भी छोड़ना पड़ता.... | बेटे को लगता था की दादी , माँ से ज्यादा प्यार करती है या यूँ कह लें , वो अपनी माँ के पास रहना ही नहीं चाहता था.... | उस हालात में , बहु  समझौता की और सब के साथ ही रही.... | जब बेटा बड़ा हुआ , माँ के सिवा किसी बात नहीं सुनता है , लेकिन बहु को कोई बात  बताने  की  जरुरत  नहीं  पड़ी..... |  आज सारे रिश्ते भी उसके आस-पास है.... | न जाने  उन   बाईस साल सालो में , कितनी बार रिश्ते तार-तार हुए और न जाने कितनी बार दिल टूटा..... |
आज बहु चाहे तो " केवल बेटे " के साथ मस्ती में रह सकती है..... !!!  लेकिन 
 " रिश्ते और दिल " क्यों न कचड़े के डिब्बे में फेके जाते..... ?? शीशा तो एक बार टूटता  है.... |
 " रिश्ते और दिल " कितनी बार टूट सकता है.... ?????

13 comments:

रश्मि प्रभा... said...

शीशा कोई भी हो चुभ जाए तो तकलीफ देता है , बार बार चुभे तो ठीक नहीं होता ... वैसे ही रिश्तों का टूटना दर्द देता है ... उस पर पैबंद लगा हम जब तक चलते हैं , पैबंद दिखते ही हैं , दर्द उभरता है , पैबन्दों की संख्या बढ़ती जाती है !सौन्दर्य या खुशबू से परे ... बस अपनी हिम्मत याद रहती है और हिम्मत भी उदास करती है कई बार ,'क्यूँ नहीं गलत का विरोध किया ! समझौते में ही ज़िन्दगी गई '

दिगम्बर नासवा said...

रिश्ते कई बार टूटते हैं पर हर बार कुछ न कुछ बिखराव आ ही जाता है ... वो पुराने वाली बात नहीं रह जाती ...

Yashwant R. B. Mathur said...

वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया है आपने। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से ऐसी परिस्थितियों का एक अपवाद मेरे आस पास मौजूद है।
कहीं काही रिश्तों के टूटने और बिखरने के पीछे समझदारी या कहूँ तो तालमेल की कमी भी होती है।

सादर

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सार्थक प्रस्तुति, सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
new post...वाह रे मंहगाई...

केवल राम said...

समय और स्थिति जीवन में महत्वपूर्ण है लेकिन इसमें सोच का अपना महत्व है ..!

Naveen Mani Tripathi said...

vaicharik drishti kon liye huye .....prernadayee prastuti ...badhai Vibha ji .

स्वाति said...

bahut sundar....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

पहली बार किसी का कमेन्ट कट और पेस्ट कर रहा हूँ, क्योंकि इससे बेहतर बात मैं भी नहीं कह सकता:
शीशा कोई भी हो चुभ जाए तो तकलीफ देता है , बार बार चुभे तो ठीक नहीं होता ... वैसे ही रिश्तों का टूटना दर्द देता है ... उस पर पैबंद लगा हम जब तक चलते हैं , पैबंद दिखते ही हैं , दर्द उभरता है , पैबन्दों की संख्या बढ़ती जाती है !सौन्दर्य या खुशबू से परे ... बस अपनी हिम्मत याद रहती है और हिम्मत भी उदास करती है कई बार ,'क्यूँ नहीं गलत का विरोध किया ! समझौते में ही ज़िन्दगी गई ' (रश्मि दी)

vidya said...

मेरा भी मन बिहारी जी कि तरह रश्मि दी का कमेन्ट कट/पेस्ट करने का हो रहा है...

सच है...समझौता भी किसी एक हद तक ही किया जाना चाहिए..

mridula pradhan said...

ek nazuk si post......khoobsurti se sambhali hui.....

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आप सभी की शुक्रगुजार हूँ..... ! आप सभी का मेरे लिखे पर ध्यान गया..... !बिना गलत का विरोध किये ,आज आपके सामने ,ये नहीं लिख पाती |समझौते तो जन्म से मरण तक होते है.... :)हिम्मत कभी टूटेगी भी ,तो आप सब का साथ है ,फिर क्या गम है..... :)

Dr.NISHA MAHARANA said...

yhi jivn ki sachchai hai.

vandana gupta said...

ज़िन्दगी मे रिश्ते और समझौते एक हद तक ही किये जा सकते हैं जब सहे ना जायें सडांध आने लगे बोझ से दबे जाओ तो छोडना ही बेहतर ताकि खुली सांस तो ली जा सके।