देवनागरी में लिखें

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Saturday, 29 October 2011

देवी दर्शन या शहर दर्शन


बहुत सालो के बाद मै मंदिर(चामुंडी देवी)गई...! देखा एक बोर्ड लगा था , सीधे प्रवेश 100 Rs. पंक्ति में 20 Rs..हमलोग 20-20 का दो टिकट लेकर लम्बी पंक्ति में लग कर अन्दर  पहुंचे... लेकिन देवी के मूर्ति से बहुत दूर.... ! एक कमरे में देवी की मूर्ति ,उससे आगे के कमरे में  पुजारियों का जमावड़ा , उससे आगे राड के घेरे में पंडितो का पहरा.... !! दर्शन के लिए कुछ सेकंड्स , मूर्ति पर निगाह गई उसके  पहले बाहर.... :( पहले (शादी के) तो  हमलोग भगवन के समीप जाकर जल-फूल-फल-अक्षत चढाते और चरण-वंदना करते.... ! उससे संतुष्टि मिलती थी कि भगवन का हाथ मेरे सर पर है.... :) आज भगवान और भक्तो के बीच इतनी दुरी क्यों.... ??    भगवान की मूर्ति घिस जाने का डर.... मूर्ति तो बनाई जा सकती है.... ! आतंकियों का डर.... पहरा तो उसी के  लिए होना चाहिए.... !
 देवी - दर्शन नहीं शहर - दर्शन का लुफ्त उठाया.... !!
 दर्शन से संतुष्टि नहीं घुमने का मज़ा आया.... ! 
 पहाड़ी - घाटी के दर्शन का आन्नद आया.... !

4 comments:

SANDEEP PANWAR said...

आपने एकदम सही बात कही है रामेश्वरम या तिरुपति को भी देख लो ऐसा ही हाल है।

रश्मि प्रभा... said...

दर्शन हमने भी किया

सदा said...

बिल्‍कुल सही कहा है आपने ...मन में ये विचार आ ही जाता है ।

संजय भास्‍कर said...

सही बात कही है