बहुत सालो के बाद मै मंदिर(चामुंडी देवी)गई...! देखा एक बोर्ड लगा था , सीधे प्रवेश 100 Rs. पंक्ति में 20 Rs..हमलोग 20-20 का दो टिकट लेकर लम्बी पंक्ति में लग कर अन्दर पहुंचे... लेकिन देवी के मूर्ति से बहुत दूर.... ! एक कमरे में देवी की मूर्ति ,उससे आगे के कमरे में पुजारियों का जमावड़ा , उससे आगे राड के घेरे में पंडितो का पहरा.... !! दर्शन के लिए कुछ सेकंड्स , मूर्ति पर निगाह गई उसके पहले बाहर.... :( पहले (शादी के) तो हमलोग भगवन के समीप जाकर जल-फूल-फल-अक्षत चढाते और चरण-वंदना करते.... ! उससे संतुष्टि मिलती थी कि भगवन का हाथ मेरे सर पर है.... :) आज भगवान और भक्तो के बीच इतनी दुरी क्यों.... ?? भगवान की मूर्ति घिस जाने का डर.... मूर्ति तो बनाई जा सकती है.... ! आतंकियों का डर.... पहरा तो उसी के लिए होना चाहिए.... !
देवी - दर्शन नहीं शहर - दर्शन का लुफ्त उठाया.... !!
दर्शन से संतुष्टि नहीं घुमने का मज़ा आया.... !
पहाड़ी - घाटी के दर्शन का आन्नद आया.... !
4 comments:
आपने एकदम सही बात कही है रामेश्वरम या तिरुपति को भी देख लो ऐसा ही हाल है।
दर्शन हमने भी किया
बिल्कुल सही कहा है आपने ...मन में ये विचार आ ही जाता है ।
सही बात कही है
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