देवनागरी में लिखें

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Saturday, 19 November 2011

सफर के ५७ घंटे.... !!


६-११-२०११
सुबह के ५ बजे मैं और मेरा बेटा मैसूर से बंगलौर आये , ९ बजे ट्रेन चली पटना के लिए....!आस - पास कोई येसा नहीं था , जिससे गप्प कर समय काटा जाये....!कोई पत्रिका भी नहीं मिल सका था.... !कुच्छ बोरियत होने लगी थी.... :( चेन्नई से ३ या ४ बजे कुच्छ परिवार चढ़े , जिनसे बात - चीत शुरू हुई.... !!
किसी ने कहा :- " लैला " काफी कुरूप थी , " मजनू " बहुत खुबशुरत...मजनू लैला के प्यार में इतने दीवाने थे ,कि उसकी एक झलक देखने के लिए उसके पीछे - पीछे बेसुध होकर दौड़ा करते.... !!इसी क्रम में उनका पैर , नमाज पढ़ते हुए मौलाना के जानमाज पर पड़ गया.... मौलाना को बहुत गुस्सा आया , वे मजनू को डांटने लगे ,बहुत भला - बुरा कहा....जब मौलाना कुच्छ देर में शांत हुए , तो मजनू ने कहा , मैं तो अपने लैला के प्यार में इतना खोया था तो आपके जानमाज पर नजर नही पड़ी , आप तो उस खुदा के याद में खोये हुए थे , तो आपकी नजर मेरे पैरो पर कैसे पड़ी.... !!
इस पर मुझे एक वाक्या याद आया ...एक दिन मेरी सास द्वारा गुरूवार के कथा सुन रहे मेरे ससुर चिल्ला केर बोले " रमुआ देख त कमरा के कोना में " भाला " बा.... इस पर मेरे पति बोले , विष्णु के खोदे के बा का.... ?"
लिखने का मतलब ये है , कि भगवन कि भक्ति में लीन होने के बाद भी इंसानों का मन भटकता क्यौ है....? यह बहस का मुद्दा था... इस बहस का कोई अंत भी नहीं था.....!!
 ७-११-२०११
आज का मुख्य मुद्दा यह रहा कि बहुओँ के साथ किस तरह से ताल मेल बिठाया जा सके...!यह भी बहस का मुद्दा था और बहस का कोई अंत नहीं था , क्योंकि सभी का अनुभव अलग - अलग था तो विचार एक कैसे एक होता...!!
८-११-२०११
पटना तक पहुँचते -पहुँचते सभी ने मुझ से पूछा कि आप किस निर्णय तक पहुचीं...?मेरा अपना कोई अनुभव तो था नहीं , इस बहस में हिस्सा नहीं बन सकी...मेरा कहना था कि सास -बहु का रिश्ता कोई थियोरी से नही संभाला जा सकता....!ये परिस्थितियों के अनुसार आपसी समझदारी से निबाहा जा सकता है , जो दोनों कि जिम्मेवारी बनती हैं....!! दोपहर के १ बजे ट्रेन पटना स्टेशन पहुंची, २ बजे मैं घर वापस आई... इस तरह ४८ घंटे का सफ़र ५७ घंटे में समाप्त हुई, फिर भी इस बार सफ़र छोटा लगा....!!

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