देवनागरी में लिखें

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Friday, 4 November 2011

सांप छछूंदर की गति.... !!

इस यात्रा की मैसूर में अंतिम रात.... !! बेटा बहुत उदास है.... उसका मन है , मैं छ महीने यहीं रहूँ.... उसे कैसे समझाउं ,पत्नी और माँ के बीच चल रहे द्वन्द को.... शादी के इन तीस सालो में , मैं कभी किसी पर्व - त्यौहार पर , अपने मैके या किसी रिश्तेदारों के घर नहीं गई.... पापा - भैया ने न जाने कितनी बार बुलाएँ होगें.... पर मेरा जाना इनको पसंद नहीं आता.... बेटी और पत्नी के द्वन्द में जीत पत्नी की हो जाती.... पापा के जीवन के अंतिम छठ में , उनकी इच्छा थी की मैं भी आऊं परन्तु नहीं जा सकी.... इसका अफसोस , मुझे भी ताउम्र रहेगा.... इस बार पत्नी और माँ के द्वन्द में जीत माँ की हुई.... दशहरे और दीपावली में बेटे के पास रही , उन्हें अकेले छोड़कर.... आते समय , जब वे स्टेशन छोड़ने आये तो बोले , मुझे सजा दे रही हो....?? जाते समय बेटा स्टेशन छोड़ने जायेगा और बोलेगा मुझे अकेले छोड़ कर जा रही हो.... ?? कितना अच्छा होता , बेटा बड़ा ही नहीं होता.... हम तीनो साथ ही रहते.... लेकिन ये कल्पना ही बेबकूफी है.... अभी तो अपने मन को समझाने के लिए , उसे समझाई हूँ , तुम्हे आगे की पढाई की तैयारी करनी है.... मै फिर जल्दी आउंगी , लेकिन जानती हूँ.... जल्दी आ पाना आसान नहीं.... आते समय मन उदास था लेकिन ख़ुशी भी बहुत थी.... !! जाते समय मन बहुत उदास ,सिर्फ उदास और बैचेन है.... :( क्योकि बेटा की इच्छा नहीं है कि मैं जाऊं.... :( शायद , इसी परिस्थिति के लिए बना होगा.... सांप छछूंदर की गति.... !! 

7 comments:

Anonymous said...

beta hameshaa yahi chahta hai ki maa paas main rahe...kyuki maa k saath hone se beta bahut strong ho jaata hai....n waise maa ka dil bhi to yahi chahta hai na....

Anonymous said...

arey ye anonymous hum hain aunty...hum means mrigank....

रश्मि प्रभा... said...

जीवन ठहरता नहीं... कभी यह उदासी, कभी वो... सब सहना होता है

विभा रानी श्रीवास्तव said...

mrigank... tumne apna parichay apni likhe shabdo se de chuke the.... :)bachcho ki bhasha bade samjhte hai.... :)

Yashwant R. B. Mathur said...

मृगांक जी की टिप्पणी को ही मेरी भी टिप्पणी समझें।

सादर

सदा said...

मां के पास होने से मन में बेहद सुकून होता है ...।

Bhawna Kukreti said...

hmm....